स्वर्ण कुसुम तुम मत खिलना अब
कोई राजकुमार नहीं है
जो अपनी प्रेयसी की खातिर
ले आयेगा तुम्हें तोड़ कर
अब उपवन में बन मृग की
कस्तूरी की गंधों से सुवासित
पुष्प खिलेंगे मतवाले से
नाम गाँव कुछ पता नहीं है
बस उनको नयनो में कैद कर
बांधेंगे मन के बयार से
जब तक गाँठ खोल कर ऐसे
निशा सुवासित हम कर लेंगे
शबनम की बूंदों को छू कर
नयन निमीलित सजल बूँद से
खुशी और दुःख के मिश्रण को
ज़रा घोल कर हम पी लेंगे
हे ! वन के सुरभित आभरणित
निशा गहन या दग्ध दिवाकर
खिलना हरदम वसुन्धरा पर
रहो स्वतंत्र रहो आच्छादित
कोई राजकुमार नहीं है
जो अपनी प्रेयसी की खातिर
ले आयेगा तुम्हें तोड़ कर
अब उपवन में बन मृग की
कस्तूरी की गंधों से सुवासित
पुष्प खिलेंगे मतवाले से
नाम गाँव कुछ पता नहीं है
बस उनको नयनो में कैद कर
बांधेंगे मन के बयार से
जब तक गाँठ खोल कर ऐसे
निशा सुवासित हम कर लेंगे
शबनम की बूंदों को छू कर
नयन निमीलित सजल बूँद से
खुशी और दुःख के मिश्रण को
ज़रा घोल कर हम पी लेंगे
हे ! वन के सुरभित आभरणित
निशा गहन या दग्ध दिवाकर
खिलना हरदम वसुन्धरा पर
रहो स्वतंत्र रहो आच्छादित

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