शुक्रवार, 23 मई 2014

प्रकृति का कैमरा

कितने भी तुम यन्त्र लगा लो
संचालित कर तार वार से
बिना बैटरी नहीं चलेगा
या फिर किरणों से उधार ले

कितने यंत्र रोज बनते हैं
कितनी फिल्मे ३डी, Hडी
पर क्या जीत सका है कोई
इस  प्रकृति का अपना नुस्खा

मैंने भी एक चित्र था खींचा
दो मंजिल के ऊपर जाकर
नीचे पेड़ की छाया थी जो
पत्ती पत्ते का तन हिलता

क्या प्राकृत का नया कैमरा
कितने पिक्सल का वो होगा
वही छवि गतिमान है रहती
या फिर शांत मूर्ती मौन सी

हम मानव उल्झे है ऐसे
तेरी मेरी चीज है अच्छी
पर मेरे शब्दों में गुंथकर
ऊपर वाले को भी सोचो


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