सोमवार, 19 मई 2014

सोने के झूमर हैं जैसे


सड़क निरी सोयी है कबसे
इक्का दुक्का टायर घिसती
रात में शबनम धो देगी फिर
धूल दिवस की रात को फिर से

सुबह गेंद सा सूरज होगा
कच्चे रंगों से रंगा सा
धुल जायेगी सारी लाली
भीगेगा जब जल की रश्मि से







नव श्रृंगार धरा का होगा
झूमर जब पलाश ले आये
नव्या सी धरती के ह्रदय पर
स्वर्ण भस्म सा नेह विछाये

सुरभि रात जब मस्त हुयी थी

 करके  ठिठोली पुष्प गाछ से
हंस हंस कर बिखरी थी धरा पर
रूप राशि दल के आँचल सी

पुष्प आभरण पहन शाकुंतल
मिली थी जब दुष्यंत से अपने
वही पलाश दग्ध था तब भी
सोने की चिड़िया थी शाख पर

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