बुधवार, 21 मई 2014

गूलर की खुशबू


याद है मुझे गाँव का घर,
चारों तरफ खेतों से घिरा हुआ
खपरैलों की छत
सामने खूबसूरत सा कुवां

कुछ दूर पर आम की बाग़,
महुवे की खुशबू से सराबोर
बढहल के फलों की मिठास खटास,
और वो कुमुदुनी का तालाब

मगर मेरा प्रिय वो अकेला पेड़
हरे हरे धान की फसल हो
या गेंहूँ , मटर ,चने से आच्छादित धरा
वो अकेला गूलर का पेड़

जाने कबसे खडा था प्रहरी की तरह
छुट्टियों में हमारे लिए तकता
हम उससे ही पहले मिलते थे
उससे पूछते थे कैसे हो तुम

ठहरना अभी सामान रख कर आयेंगे
बैठेंगे तुम्हारी छाँव में
तुम्हारे कच्चे पके फलों को चखना है
मगर इस बार अपने फूल दिखाना जरूर

ओ गूलर तुम आज होगे क्या,
मैं बहुत दूर हूँ तुमसे
तुमसे जुड़ा है मेरा बचपन
मेरा बालमन , मेरी यादें

आज भी मन पुकारता है तुम्हें
क्या तुम्हें उस जीवन से मुक्ति मिल गयी ?
क्या तुम आस पास नए जीवन में हो
मगर वो जगह !मुझे वापस आना है तुमसे मिलने


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