गए गए एक बरस हो गए
अब तक ना चिठिया ना पाती
सूख रही है मछरी ताल में
प्रान जरत है दिय बिन बाती
आंधी पानी रोज लपेटत
तन विहरत है पवन, मलय संग
मनवा विहग बनि , उडत पात जस
गिरत परत दुःख रोज संजोवत
निकर परी है आज बहुरिया
बीत गयो अब लाज को सावन
खेत और खलिहान जरत है
उपवन तनिक है आस बंधावत
पिया भयो दुश्यंत सरीखो
शाकुंतल भई फिर से विरहनी
विस्मृत पांखी शाख भूल गयी
लौटगी कब सुधि ले संगिनी
अब तक ना चिठिया ना पाती
सूख रही है मछरी ताल में
प्रान जरत है दिय बिन बाती
आंधी पानी रोज लपेटत
तन विहरत है पवन, मलय संग
मनवा विहग बनि , उडत पात जस
गिरत परत दुःख रोज संजोवत
निकर परी है आज बहुरिया
बीत गयो अब लाज को सावन
खेत और खलिहान जरत है
उपवन तनिक है आस बंधावत
पिया भयो दुश्यंत सरीखो
शाकुंतल भई फिर से विरहनी
विस्मृत पांखी शाख भूल गयी
लौटगी कब सुधि ले संगिनी

सुन्दर
जवाब देंहटाएंthanks ravindr bhai
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