सोमवार, 30 जून 2014

फूल वाली ( ये ब्लॉग पुष्प कवित्त पर है - पर बात है फूल वाली की इसलिए .. :-) )

हर रविवार तडके मतलब सुबह पांच बजे मदिर के लिए निकलते हैं , सोचते हैं की मंदिर का विशाल कपाट हमारे ही सामने खुले , कभी कभी छह बजे ,,या फिर साढ़े  छह बजे खुल ही जाता है ,,,एक एक किलो की चाबियों से , पुजारी जी के हाथों द्वार खोलने की पहली प्रक्रिया ,,फिर अन्दर विद्युत् यंत्र चालित ड्रम , नगाड़ों की ध्वनि से माँ को आगाह करते हैं,,,फिर श्रद्धालु श्री प्रथमेश को नमन कर माँ के द्वार पर खड़े हो जाते हैं,,,पुजारी जी एक हाथ में आरती का थाल लिए लिए द्वार खोलते हैं,,,सभी दर्शनों के आतुर माँ को जी भर  देखते हैं और दिव्य आशीर्वाद की अनुभूति पाते हैं,  ( ये वाकया बैंगलोर के बनशंकरी मंदिर का है ) आज के दौर में बैंगलोर का सबसे धनी मंदिर ,,,और हो भी क्यों ना माँ जगत जननी का स्थान है , मंदिर पहले पुराना था,,,और अब बिलकुल नया नवेला सा,,,,जब मंदिर पुराना था उस समय मंदिर के सामने कई झोपडी नुमा दुकाने थी जिसमे पूजा फूल सामग्री आदि बिकती थी,,,मगर मदिर के रूप को भव्यता देने के बाद इन सब फूल वालियों को स्थान से हटा दिया गया . एक कारण और था बिलकुल मंदिर के द्वार के सामने मेट्रो स्टेशन अपने पूर्णता के दौर पर है ,,फिर कहाँ इन्हें स्थान मिलेगा,,,हाँ एक फूल वाली जरूर अपने रुतबे को बरकरार रखते हुए द्वार पर मिल ही जाती है,,,जाने कितनी दूर से ऑटो से आती है, मगर सूर्य उदय के साथ साथ ही मंदिर के प्रवेश द्वार पर विराजमान दिखती है,

सोचती हूँ ,,,हमें सुबह सुबह जाग कर नहा कर निकलने में और रास्ते भर सोते हुए जाने में ही मुश्किल होती है और ये औरत इतनी सुबह अपने फूलों के गट्ठर के साथ मुस्कराती हुयी मिलती है ,


जिस रविवार हम नहीं जा पाते अपनी भाषा में इजहार जरूर करती है,,,"याके नींन बंदिल्ला " पूजा के बाद कार के लिए (भगवान् के लिए ) उससे थोडा फूल लेने पर उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है,,,ख़ास बात सुबह पूजा के लिए हम उससे फूल नहीं लेते ,,,बाहर से लेते हैं एक दिन पहले आर्डर देकर ,,,उसे शायद कोफ़्त होती है मगर जाहिर नहीं करती,,,,हाँ कुछ मिठाइयाँ जरूर लेती है प्रसाद के,,,मैं भी उसे अच्छी अच्छी मिठाइयों के चार पांच बडे बडे पीस देती हूँ,,,सोचती हूँ माँ का आशीर्वाद है तो एक टुकडा ही काफी है हमारे लिए  मगर ये मेहनतकश औरत की खुशी अधिक जरूरी है......औरत और पुरुष दोनों ही इश्वर के नुमाइंदे हैं,,कोई किसी तरह उन्हें याद करता है कोई किसी तरह ,,,लेकिन आज के दौर में हर इंसान फूल का सौदा नहीं कर सकता ,,,ना करे ,,,लेकिन नारी को पूज्या तो समझे,,,,,माँ शक्ति की तरह ,,


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