गाँव का नाम सुनते ही कच्चे घर , खुद के बनाए रंगों से लिपे पुते हुए, हर घर के आगे, आम,कटहल और जाने क्या क्या हाँ याद आया बेर और करौंदे की झाड़ियाँ नुमा पेड़, बस ये कंटीले वाले घर के पीसी ही मिलते थे, और फिर उपलों की अजीब सी खुशबू , गाय भैंसों के घर जिसमे हम लुका छिपी खेलते थे, गर्मी की छुट्टियां और हमारा गाँव जाना निश्चित हो जाता था, आखिर बाबा , दादी, नाना , नानी , मामा , मामी तक पहुँचना परिवार का फर्ज माना जाता है .
जैसा की मैंने ब्लॉग के पहले भाग में उल्लेख किया है की मैं अपने उन किरदारों को यहाँ लाऊंगी जिनके करीब मैं आज भी हूँ, आज जब भी मेरी बातें होती हैं मुझे वो सब कुछ वैसे ही दृश्यगत हो जाता है जैसे वो मेरा आज हो. मुझे याद है...बड़ा सा घर ..कुछ पक्की मिटटी का , कुछ इंटों का , कहीं कहीं नक्काशी वाली दीवार, घर के दरवाजे पर शेरो की आकृति वाली मूर्तियाँ, बाहर एक बड़ा सा तख़्त ..जिस पर दिन में बुजुर्गों का जमावड़ा ..तख़्त के ठीक ऊपर दशहरी आमों का पेड़ , और हाँ मेंन दरवाजा बडे बडे कुंडो वाला कुछ कुछ बुलंद दरवाजे सा मगर उससे बहुत छोटा ....बहुत सारे मनपसंद पेड़ जिनके नीचे हम भी भाई बहनों के साथ छोटे तख़्त पर खेलते थे. कुछ चिड़ियों के घोसलों पर अपना ज्ञान बघारते थे....वहाँ सबसे प्रिय साथी मेरे चाचा का बेटा विनोद...हम दोनों दिन भर साथ साथ घूमते थे . आमों के बाग़ में दिन भर चक्कर लगाना , फिर आमों को लाकर भूसे के कमरे में छुपाना , और विनोद के रखे आमों को चुरा कर खा जाना, ,,,ऐसी बात नहीं थी की आमों की कमी थी, आँगन के बडे कडाहे में पानी के बीच कम से कम .६० से ७० आमों को रोज ठंडा किया जाता था,,,मगर चोरी करके आम खाना जादा मीठा लगता था,. खैर .....हम और विनोद दोपहर में अक्सर नहर के ऊपर बनी छोटी सी पुलिया पर बैठ जाते थे , नहर के पानी की इक्का दुक्का मछलियों का ओपरेशन भी करते थे, मैं और विनोद उस पुलिया से उतर कर बहते हुए छिछले पानी से मछलियों को निकाल कर उन अपना शोध कर अपने अपने ज्ञान की शेखी जरूर मारते थे, और एक खेल हम घंटों खेलते थे...कुछ दृश्यों पर हिंट देकर उसे बताने को कहते थे...जैसे की " एक गोल सा मगर नुकीला भी ..हवा में एक डंडी के सहारे लटका हुआ " पीपल का पत्ता ,,,और ना जाने कितनी दृश्यगत चीजों के बारे में,,,,
और मुझे उसका गाँव का स्कूल बहुत प्रिय था... छोटे छोटे कमरों का स्कूल ,,,मास्टर लोग बस रूलर लेकर क्लास में आते थे ,,और टाइम पास करके चले जाते थे, रोज सोयाबीन का हलवा गन्ने के रस में पगा हुआ जरूर मिलता था,,, दो तीन हैण्ड प्म्प जिस पर बच्चे झूलते जादा थे पानी कम पीते थे,,,,मैं वहां जब अपनी इंग्लिश पोएम्स सुनाती थी तो सब बडे ही कौतूहल से सुनते थे,,,,वहाँ इंग्लिश क्लास सिक्स से पढ़ाई जाती थी वो भी शुरुआत से,,,A B C D से जहां हमने 5TH क्लास तक जाने कितने प्ले और भाषण बाजी कर ली थी...मगर वहाँ का सीधा साधा माहौल , भोले भाले बच्चे , मुझे बहुत अछे लगते थे,,,
जब तक गाँव में रहती थी खूब उधम बाजी , दिन भर धुल मिट्टी में खेलना,,,२ - २ आमों की अपनी बाग़ होते हुए भी दूसरों के पेड़ के आम बहुत पसंद थे,,,जिनके नाम ,,,सुभाव..नहर के पास था, नेबुहवा ...मझली दादी ( जिनका जिक्र आगे खंड में होगा ) के घर के पास.., जल्लाद आम.., करियवा,,,आम ,,ये सब नाम और इनकी खासियत गजब थी,,,येही सब तो बताना है मुझे,,,संजोना है शब्दों में,,,,मैं रहूँ या ना रहूँ शब्द जरूर रहेंगे,,,,
मैं विनोद...गाँव की सीमा तक खूब झगडा करते थे,,,मगर जब लौटना होता था,,,उदास हो जाता था,,,१५ वर्ष दुबई में था,,,अब घर आ गया है,,,,मुझे फिर से जाना है मिलने,,,माना की सबकुछ बदल चुका है मगर धरती वही,,,है... धरती वही है धरती वही है.....
और मुझे उसका गाँव का स्कूल बहुत प्रिय था... छोटे छोटे कमरों का स्कूल ,,,मास्टर लोग बस रूलर लेकर क्लास में आते थे ,,और टाइम पास करके चले जाते थे, रोज सोयाबीन का हलवा गन्ने के रस में पगा हुआ जरूर मिलता था,,, दो तीन हैण्ड प्म्प जिस पर बच्चे झूलते जादा थे पानी कम पीते थे,,,,मैं वहां जब अपनी इंग्लिश पोएम्स सुनाती थी तो सब बडे ही कौतूहल से सुनते थे,,,,वहाँ इंग्लिश क्लास सिक्स से पढ़ाई जाती थी वो भी शुरुआत से,,,A B C D से जहां हमने 5TH क्लास तक जाने कितने प्ले और भाषण बाजी कर ली थी...मगर वहाँ का सीधा साधा माहौल , भोले भाले बच्चे , मुझे बहुत अछे लगते थे,,,
जब तक गाँव में रहती थी खूब उधम बाजी , दिन भर धुल मिट्टी में खेलना,,,२ - २ आमों की अपनी बाग़ होते हुए भी दूसरों के पेड़ के आम बहुत पसंद थे,,,जिनके नाम ,,,सुभाव..नहर के पास था, नेबुहवा ...मझली दादी ( जिनका जिक्र आगे खंड में होगा ) के घर के पास.., जल्लाद आम.., करियवा,,,आम ,,ये सब नाम और इनकी खासियत गजब थी,,,येही सब तो बताना है मुझे,,,संजोना है शब्दों में,,,,मैं रहूँ या ना रहूँ शब्द जरूर रहेंगे,,,,
मैं विनोद...गाँव की सीमा तक खूब झगडा करते थे,,,मगर जब लौटना होता था,,,उदास हो जाता था,,,१५ वर्ष दुबई में था,,,अब घर आ गया है,,,,मुझे फिर से जाना है मिलने,,,माना की सबकुछ बदल चुका है मगर धरती वही,,,है... धरती वही है धरती वही है.....









