vichaarveethika.blogspot.in/(कल्पना की उड़ान शब्दों में)" या "paankhiaurman.blogspot.in (प्रवाह जो रुकता नहीं)" जैसे सम्रिध्ह ब्लाग्स ( रचनाओं का अम्बार है इनमे ) को ना चुनकर मैंने " मन और पलाश " को चुना इस विषय की श्रृंखला के लिए...वैसे मैंने सोचा था की मन और पलाश में सुगंध और पुष्प संसार से सुवासित कवित्त ही होगा मगर ध्यान से सोचा तो येही लगा की आखिर गाँव की माटी और उसकी भीनी भीनी खुशबू से तरबतर वातावरण पलाश और गुलमोहर के रंगों सी यादों के लिए मेरा येही ब्लॉग साईट सही रहेगी तो चलिए चलते हैं गाँव की तरफ.....ये ऐसे और हमजैसे लोगों के लिए विषय है जिन्हें गाँव से रूबरू होने का बहुत कम मौक़ा मिला है और जितना मिला है शायद मेरे शब्दों का सौभाग्य होगा की उन्हें एक धरातल के रूप में एक स्थान दे ,,,,,,,,जय हो
बचपन में स्कूल से गर्मी की छुट्टियाँ हुयी नहीं की हमारा टिकट कट जाता था गाँव के लिए कभी पिताजी के गाँव तो कभी ननिहाल माँ के गाँव ....कभी कभी पिताजी अपनी सरकारी गाडी से छोड़ आते थे मगर जादातर व्यस्तता के समय हमें ट्रेन या बस का सफ़र ही करना पड़ता था. मुझे बस सफ़र तक ही आनंद आता था,,,उसके बाद २ - ४ दिन एडजस्ट करने में बीतता था,.,,गाँव में शहर की तरह साफ़ सुथरी जिंदगी नहीं थी,. मगर अनुशाशन के तेहत पला बढ़ा इंसान पूर्ण स्वतंत्र हो जाए तो कुछ समय के लिए सुकून जरूर मिलता था, ना सुबह स्कूल जाने की चिंता ना पढने की ताकीद बस घूमो, खेलो, खाओ , उधम मचाओ और सो जाओ . मेरे ब्लॉग की शुरुआत गर्मी की छुट्टियों से करना है हालांकि कुछ सर्दियां भी शायद एक या दो काटी हैं गाँव में .,
इस ब्लॉग के आगामी अंकों में किरदारों और अनुभूतियों का जमावड़ा होगा, जो आज मुझे रह रह कर याद आते हैं, एक एक शक्लें मुझे हूबहू याद हैं, उनके साथ बिताए गए पल ...कुछ रिश्तेदार कुछ बाहर के लोग सभी को अपने ब्लॉग में एक स्थान देना है. आखिर शब्दों का घर है किराया देना नहीं है बस उन्हें बा-इज्जत इसमें एक जगह देकर यादों को सुकूनियत का जामा पहनाना है.....
सबसे पहले अपने यानी पिताजी के गाँव का रुख करना है ... और वो मेरे अगले गाँव और मैं - भाग २ में शुरू होगा /// आप सब का प्रोत्साहन जरूरी है ..... :-)

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